Tuesday 21 January 2014

संतोष की बात है कि केजरीवाल की सरकार का धरना खत्म हुआ किन्तु यह प्रसंग कई तरह के सवाल खड़े करते हुए चेतावनी भी दे गया है।  अपनी भाषा पर नियंत्रण , गहरी मानवीय सोच और व्यवहार तथा सरकार चलाकर दिखाना और सादगी,ईमानदारी तथा कर्तव्यपरायणता की मिसाल पेश करने से ही यह कारवाँ आगे जा सकता है , इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है।  अपने लोगों को अनुशासन और संगठन की डोर में बांधे रखना भी कम चुनौती नहीं है।  इसे भानुमती का कुनबा बनाने से भी बचना चाहिए और अंतर्राष्ट्रीय से लगाकर राष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी बात रखनी चाहिए तथा जाति , मज़हब , क्षेत्र ,धन और बाहुबल से ऊपर उठकर एक नए तरह की राजनीति करने का जो सन्देश गया है  वही  दूर तक चलते रहना चाहिए।  यह नट की  तरह पतली डोर पर संतुलन साधकर चलते रहने का खेल है ,खाला का घर नहीं।  

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