Monday, 13 January 2014

मकर संक्रांति का पर्व एक ग्रामीण और किसानी पर्व है --ठेठ देहाती ----, गिंदड़ी ,गिल्ली-डंडा ,सतोलिया से मन बहलाने, आमोद-प्रमोद का पर्व ।जयपुर में यह पतंगबाजी का त्यौहार है ।  ब्रज में इस पर्व पर कुश्ती-दंगल  होते रहे हैं।  दिन में चने का शाक खाने के लिए , चने के खेतों में झुण्ड के झुण्ड जाते  हैं/थे ।इसे तोता बनना  कहा जाता है।कहते हैं कि चलो,तोता बनने चलें ।    समय बदलने पर अब यह ठेठ और अंदर के गाँवों में  रह गया है।कल अलवर के भीतरी गांवों में जाना हुआ ,जहां इस पर्व की पूर्व-संध्या का नज़ारा देखने को  मिला --ख़ास और से ग्रामीण महिलाओं में  , जो अपनी ससुराल से पीहर जा  रही थी। रंग-बिरंगे परिधानों में सजी-धजी । मैं जिस बस में लौट रहा था, उसके आगे चल रहे ट्रक के पीछे लिखा हुआ था -----'मार हौरन , निकल फ़ौरन ।' क्या तुक भिड़ाई है। किसी ड्राइवर की सूझ-बूझ हो सकती है।  इस पर्व पर मित्रों को शुभकामनाएं।    

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