वही कवि -रचनाकार टिकाऊ होगा और जन-मानस को दूर तक प्रभावित करने वाला भी , जो अपने अंतरंग -बहिरंग का एका अपने जीवन और रचना दोनों से प्रमाणित कर सकेगा। कविता, पूंजी संकलन का कोई व्यवसाय -क्षेत्र नहीं है ,जहां सफलता को ही सब कुछ मान लिया जाता है । यह सार्थकता की नींव पर संरचित दुनिया है ,जिसमें नैतिकता और जन-संस्कृति के झरोखों से आने वाली धूप -हवा के बिना स्वास्थ्य बिगड़ने का ख़तरा हमेशा रहता है ।यह सच्चे योग-साधकों का एक ऐसा संसार है ,जिसमें शिथिल समाधि होते ही सब कुछ गड़बड़ा जाता है। इसीलिये तो पूंजी- व्यवसायी इस दुनिया से दूर रहते हैं या फिर अपनी सरप्लस पूंजी से धर्मादे की तरह कुछ इनाम-इकरार घोषित कर इसमें घुसने और अपनी साख बचाने का प्रयत्न किया करते हैं।आजकल सरप्लस पूजी के घुसपैठियों ने इसमें भी सेंध लगाना शुरू कर दिया है। वे अनेक शक्लों में इसके अंतरंग में प्रवेश पा चुके हैं। इसे बाज़ारवाद के रंग के रूप में भी देखा जा सकता है। आत्म-विज्ञापन की आतुरता को भी भौंडी और बेहूदी व्यावसायिक विज्ञापन की ठगी और टटलूबाज़ी के समानांतर देखा जा सकता है।
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