Tuesday 21 January 2014

१९ जनवरी रविवार को अलवर के सृजक संस्थान के मित्रों ने ---राजनीति का वर्त्तमान और आगे की सम्भावनाएं-----विषय पर एक विचार-गोष्ठी का आयोजन किया ,जिसमें मुख्य वक्ता दिल्ली वासी और 'सब लोग' (राजनीतिक मासिक ) तथा 'संवेद '(साहित्यिक मासिक) के सम्पादक श्री किशन कालजयी थे। उन्होंने कहा कि राजनीति आज अनेक लोगों के लिए बिना मेहनत के प्राप्त अकूत दौलत संचित करने का जरिया बन चुकी है ,सत्ता का दम्भ और नशा इससे अलग है । इस वजह से लोकतंत्र में  सत्ता के नए सामंत पैदा हो गए हैं। ,सत्ता की  दलाली करने वालों का तो जैसे जाल बिछ गया है ।इससे लोकतंत्र की गति में अवरोध पैदा हुआ है।  आम आदमी का यही गुस्सा है , जो बार बार फूट कर निकलता है । आम आदमी झूठा और सामंती किस्म का लोकतंत्र नहीं चाहता। उनका कहना था कि  आज के पूंजीपरस्त राजनीतिक दल पहले राजनीति में पूंजी का निवेश करते हैं और इसके बाद उसी से अपार सम्पदा और वैभव के  मालिक बन जाते हैं। यह कुचक्र चलता रहता है।  इसी से भ्रष्टाचार बढ़ता जाता है और वह आम आदमी की जान का लेवा बन जाता है।  आम आदमी का सबसे बड़ा कष्ट यही है।  इसी लिए जब उसे इससे निज़ात पाने की कोई  गली मिलती है तो वह बेझिझक  उस पर चल देता है।  दिल्ली के चुनावों में इसीलिये उसने नया रास्ता खोजा है।  यह अलग बात है कि इस नए  रास्ते में आगे की सम्भावनाएं ही नहीं ,  कितनी ही तरह के  अवरोध भी  हैं क्योंकि जिनके हाथ से सत्ता जायगी , वे आसानी से उसे अपने हाथ से नहीं जाने देंगे।  अतः , बहुत सम्भलकर चलने की जरूरत है। आचरण की सजगता के बिना आगे की सम्भावनाएं धूमिल होने का ख़तरा बना रहता है।  इसलिए  फूंक कर कदम बढ़ाने की जरूरत है। 

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