जैसे सुभद्रा कुमारी चौहान ने झांसी की रानी को " खूब लड़ी मर्दानी " कहा था। प्रवाह के पाट की चौड़ाई और गहराई के आधार और आकार-प्रकार को देखकर पुरुष प्रधान समाज में प्रकृति-पदार्थों का लिंग निर्धारण किया जाता रहा। यह भाषा के निर्माण पर पुरुष प्रभुत्व का परिणाम है। आहार, वेश ,सभ्यता सभी पर प्रभुत्व अपना असर छोड़ते हैं। बिम्ब-रूपक और अवधारणाएं भी ऐसे ही बना करती। प्रभुता -परिवर्तन होते ही ये सब बदलने भी लगते हैं।
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