Sunday 5 January 2014

बहुत गर्मी में थोड़ी-सी छाया का आसरा मिलना भी सुखदायी होता है ।  किसी 'छाया'से इससे ज्यादा उम्मीद लगाना वास्तविकता की  अनदेखी करना है । यह किसी से छिपा नहीं है कि "आप" का अपना कोई ढांचा नहीं है। वह विशुद्ध  अवसरानुकूल पैदा हुई आकस्मिक परिस्थिति की देन  है ।उसका कोई सुचिंतित विधान नहीं है।  उसका भरोसा है वह आम आदमी ,जिसका मौजूदा राजनीति ने दम घोंट दिया है। जब कि उसके सामने राजनीति के मंजे हुए  धुरंदर खिलाड़ी हैं , जो दाव , लगने की फिराक में हैं।  जिनकी  नज़र मछली के शिकार पर बगुले की तरह रहती है। फिर भी , आशा करनी चाहिए कि राजनीति के  धौंसे  में  यह छोटी  -सी  धमक अपना रंग जरूर दिखायेगी।एक पत्थर उछलता है तो आकाश में कम्पन  होता ही है।        

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