Saturday, 25 January 2014

सबके बच्चे पढ़ना-लिखना और मनुष्यता के पथ पर आगे बढ़ने की इच्छा रखते हैं।  यह अलग बात है कि निर्धन और असहाय वर्ग के बच्चों को यह सुविधा नहीं मिल पाती।  धनाढ्य  वर्ग तो अपने बच्चों को अमरीका-इंग्लेंड भेजकर भी  पढ़ा लेता है।सरकारी स्कूलों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है और वर्गीय शिक्षा -प्रणाली को स्वाधीनता के नाम पर फैला दिया जाता है।  समाज वर्गों में गुजर-बसर करता  है तो शिक्षा-चिकित्सा और धन अर्जित करने की प्रणालियां भी वर्गीय होती हैं।इसलिए भाषा--माध्यम भी दो तरह के बना दिए जाते हैं।  अंग्रेजी - माध्यम से पढ़ने वाला ऊंची नौकरियों पर कब्जा जमा लेता है और हिंदी माध्यम वाला निम्न--मध्यवर्गीय नौकरियों तक ही अपनी पहुँच बना पाता  है।  इसमें भी प्रतियोगिता आड़े आती है.।   

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