राष्ट्रपति के गणतंत्र दिवस पर किये गए औपचारक राजनीतिक सम्बोधन में देश में सक्रिय सभी राजनीतिक दलों की राजनीति पर छींटे पड़े हैं ,जिसमें समझ लेने की दिशा में दलगत संकेत और व्यंजनाएं भी हैं। इसमें कांग्रेस की राजनीति को भी छोड़ा नहीं गया है। मनमौजी अवसरवाद और साम्प्रदायिकता वाली विखंडनकारी राजनीति के संकेत को भी आसानी से समझा जा सकता है। जहां तक लोक-लुभावनता का सवाल है वह लगभग पूरी राजनीति का गोरखधंधा बन चुका है।अराजकता और आंदोलन में फर्क कर लिया जाता तो शायद लोक-लुभावन अराजकता जैसा प्रत्यय ---ख़ास तौर से सद्य-गठित अनुभव रिक्त आम आदमी पार्टी संकेतों की चपेट में आने से बच जाती। इस सम्बोधन में वामपंथी दलों की जनसंबद्ध राजनीति का नोटिस न लेना ---नव - उदारवादी अर्थ--नीतियों को इस प्रसंग में किसी भी रूप में जिम्मेदार ठहराने से किनारा करना है।
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