शिष्टता पेड़ों पर
टंगी नहीं होती
न ही वह
दगडे में पडी मिलती है
बाज़ार में तो वह होती ही नहीं
मैंने उसे लगातार काम करने वाले
गैर लफ्फाज़ आदमी में देखा
उसके पास इतना है
कि जब सघन अन्धेरा होता है
तो वही दिखलाता है रास्ता ।
टंगी नहीं होती
न ही वह
दगडे में पडी मिलती है
बाज़ार में तो वह होती ही नहीं
मैंने उसे लगातार काम करने वाले
गैर लफ्फाज़ आदमी में देखा
उसके पास इतना है
कि जब सघन अन्धेरा होता है
तो वही दिखलाता है रास्ता ।
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