Thursday 21 November 2013

तात तीन अति प्रबल खल , काम क्रोध अरु लोभ ।
मुनि विज्ञान धाम मन , करहि निमिष महुँ क्षोभ ॥
इन दिनों काम का ज्वार इतना फैला हुआ है कि सम्भलने में नहीं आ रहा है । फिर इसमें तरुण तेज पाल हों या कोई रिटायर्ड जज ।मंत्री , संतरी या बाबा वेशधारी लम्पट ।  सभ्यता की अपनी गर्मी होती है जो असंतुलित होकर समाज में व्याप्त होती जाती है । नैतिकता के मसले आत्मानुशासन  की ही मांग नहीं करते बल्कि विलास -आकांक्षी मन की वल्गा को साधे  रखने की भी । ज़रा सा फिसले  कि खड्ड में गिरे   ।किसी भी तरह की सत्ता की आकांक्षा,लोभ से निकलकर  दम्भ-क्रोध की यात्रा करती हुई काम तक जा पहुचती है । इसमें कभी-कभी  ताकतवर लोग भी फंस जाते हैं और बच भी जाते हैं ।ताकतवर जब तक बचते रहेंगे, यह खेल थमनेवाला नहीं । वह दिन न जाने कब आयेगा, जब सबकी शक्ति बराबर होगी ?बराबरी में किसी को सताना मुश्किल होता है , इसीलिये लोग कभी बराबरी के विचार को तवज्जो नहीं देते ।    

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