Friday 1 November 2013

कलाकार अपनी कला में दक्ष हो सकता है , जरूरी नहीं कि  जीवन-सम्बन्धों की उसकी  दृष्टि और राजनीतिक नज़रिया भी उतना ही बारीक ,व्यापक और गम्भीर हो । स्वाधीन समाज में सब अपनी राय दे सकते हैं और इच्छा भी व्यक्त कर सकते हैं । कलाकार यदि बुनियादी जीवन-सरोकारों के पास नहीं है और वह दूर से ही चीजों को देखता है तो दूर के ढोल सुहावने लग सकते हैं ।दूरी और सचाई के बीच एक खाई रहती है । 

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