Saturday 9 November 2013

यह मेरी  सफलता है कि
सब नहीं चाहते मुझे 
चाहना मुमकिन भी नहीं
तुम जहां हो
वहाँ नदी बहती है
और मैं जहां हूँ
वहाँ रेगिस्तान है
रोज कुआ खोदता हूँ
 पीता  हूँ पानी
तुम्हारा एक आकाश है
और मेरे पास धरती का बिछोना तक नहीं
तुम्हारे पास एक दुनिया है
मेरे पास अकेलापन
तुम्हारी हाँ में हाँ मिलाने वाले लाखों हैं
मेरे पास गिनती के दो भी नहीं
तुम चौधरी हो
न्याय की वल्गा तुम्हारे हाथ में है
मैं हूँ सबसे बड़ा मुजरिम कि
मेरे पास सिर्फ और सिर्फ मेरा जिस्म है ।

No comments:

Post a Comment