Wednesday 9 April 2014

बहुत बहुत  धन्यवाद भाई अग्रवाल साहिब ,मुद्दत बाद जयपुर जाना हुआ ,केवल इस लोभ से कि पुराने साहित्य -सहचरों -मित्रों से आँखें चार होंगी।  वे हुई भी। अग्रवाल साहब से पहला सम्बन्ध--सूत्री परिचय 1974 साल के अगस्त में स्थानांतरण के सिलसिले में हुआ। मुझे शिकायतन जरिये कलक्टर सिरोही से  दूरस्थ धुर ईस्ट में दण्डित करने के इरादे से अलवर नहीं ,दौसा भेजा गया , जहां से आपातकाल लगने पर  १९७५ के अंत में बूंदी भेज दिया गया। उस जमाने में नौकरियों में  न आज की सी राजनीतिक दखलंदाजी थी ,न तबादला होना कोई आफत जैसा था। तबादले का फायदा यह था कि नयी जगह के नए दोस्त,नयी प्रकृति , नया परिवेश , नया भाषा-बोली का संस्कार  मिलते थे। मैं तो यह मानता हूँ यदि  देश में आपातकाल न लगा होता और मेरा बूंदी तबादला न हुआ होता तो मैं राजनीतिक दृष्टि से आज दक्षिणपंथी होता। मेरा किशोरावस्था का पालन-पोषण एक बेहद वैष्णव ब्राह्मण  पारम्परिक परिवार में हुआ। जो हमारे नज़रिये को दक्षिणमार्गी बनाता  है ,जिसकी वजह से  हम वास्तविक जीवन-यथार्थ को नहीं समझ पाते। बहरहाल , मैं अलवर तो इसके ठीक १० साल बाद १९८४ में आया। बूंदी से अक्सर कोटा आना जाना होता था ,जहां यथार्थ की जटिलताओं को समझाने और खोलने के लिए मथुरा से औद्योगिक संगठित श्रमिकों को श्रम-सम्बन्धों की शिक्षा देने   के लिए  उत्तरार्ध पत्रिका के सम्पादक सव्यसाची आया   करते  थे। यह सब आपातकाल होने के बावजूद होता था। एक तरफ हम २० सूत्री कार्यक्रम का गुणगान करते थे तो दूसरी तरफ
उनके पीछे छिपी असलियत को तलाशते थे। बूंदी से 1979 में गंगापुर सिटी गया और वहाँ से अलवर आया। बूंदी---कोटा के तीन साल मेरे लिए सबसे  अलग स्मरणीय हैं। इस अवधि में मैं एक ऐसी  जगह पर रहा ,जहाँ सूर्य मल मिश्रण सरीखा महाकवि हुआ। १८५७ के पहले स्वाधीनता संग्राम का निडर प्रतापी  योद्धा कवि -पंडित।जिसके वंश-भास्कर से राजा भी नाराज़ हुआ ,लेकिन उसने सच कहने से परहेज़ नहीं किया।  कदाचित ऐसी ही वज़हातों से  १८५७ के संग्राम का सबसे बड़ा जन-संग्रामी केंद्र हाड़ौती ,खासकर कोटा रहा।
अलवर मेरे लिए अपने घर की तरह बन गया है। यहाँ के इतिहास-भूगोल और खासकर यहाँ की सामासिक संस्कृति के सबसे बड़े गायक ख्याल-प्रणेता अलीबख्स के लोक--संगीत ने मुझे यहीं का बना दिया। ८ अप्रेल को जयपुर में बहुत दिनों बाद हुए साहित्य-समागम  में भाग लेने की बेहद खुशी है।

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