Tuesday 22 April 2014

दुनियावी  ज़िंदगी में विदूषक की पैठ सबसे गहरी होती है। वह जितने तरह की मार झेलता है और वह भी हँसते -हँसते , इस रहस्य को शेक्सपीयर खूब जानते और समझते थे।विदूषक को जमीनी अनुभव होते हैं ज़िंदगी के। शेक्सपीयर , कदाचित इस जीवन-रहस्य को भी जानते थे ,कि दरबारी जीवन की षड्यंत्रपूर्ण सचाइयों को जितना विदूषक जानता  और समझता है , उतना  अनुभवहीन ज्ञानी भी नहीं।  यही तो महानता है इस महान रचनाकार की। उनकी स्मृति को सादर नमन।

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