Friday 25 April 2014

श्रद्धा का रिश्ता कर्म से होता है। एक बार प्राप्त किये गए यश से श्रद्धा की निरंतरता नहीं बनती।  यदि व्यक्ति ,सामाजिक कर्म के प्रति अपना दायित्त्व न निबाहे और उदारता में गच्चा खा जाए तो श्रद्धा को अपनी जगह से भागते देर नहीं लगती।  इसीलिये श्रद्धेय को हमेशा परीक्षाकाल से गुजरना पड़ता है।

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