सोलह दिसंबर
स्त्री के आकाश में
आज भी शून्य पल रहा है
उसके आकाश का रंग
नीला नहीं
गहरा काला बना दिया गया है
जैसे श्रम के आकाश के साथ
दगाबाजी की गयी है ।
किन्तु पहाड़ से जब
झरना रिसने लगता है
तो वही नदी बन जाता है
और उसकी बाढ़ में
बह जाती है गंदगी
और कूड़े के ढेर ।
स्त्री के आकाश में
आज भी शून्य पल रहा है
उसके आकाश का रंग
नीला नहीं
गहरा काला बना दिया गया है
जैसे श्रम के आकाश के साथ
दगाबाजी की गयी है ।
किन्तु पहाड़ से जब
झरना रिसने लगता है
तो वही नदी बन जाता है
और उसकी बाढ़ में
बह जाती है गंदगी
और कूड़े के ढेर ।
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