दिल्ली में जैसी भी परिस्थितियां हैं , समय का तक़ाज़ा यह है कि 'आप' पार्टी को सरकार बनाकर एक वैकल्पिक उदाहरण भी प्रस्तुत करना चाहिए । कुछ निर्णय ऐसे करने चाहिए जो उदाहरण बन सकें और जनतंत्र की एक नयी मिसाल कायम कर सकें ।इस काम को करने में कुछ समय केजरीवाल लेते हैं और एक दूसरी तरह की परम्परा डालते हैं तो इसे होने देने में क्या हर्ज़ है ? 'आप' पार्टी ने सभी राजनीतिक दलों की चुनौती को स्वीकार कर बड़ा काम यह कर ही दिया है कि सभी को आईना दिखला दिया है । और वे भी फूंक फूंक कर कदम रखने को मजबूर हुए हैं ।अन्यथा जैसा भी लोकपाल बिल है , अब भी अधर में लटका रहता । किसी बच्चे से अनुभवी और खुर्राट बूढ़ों जैसी अपेक्षा करना किसी भी तरह उचित नहीं कहा जा सकता । यह अपने जाल में फंसाने जैसा है । अलग तरह से चलने की हिम्मत करना, एक भ्रष्ट हो चुके तंत्र में वैसे ही बहुत मुश्किल होता है । एक जैसी राह पर चलना आसान होता है पर जब राह कुछ अलग तरह की हो तो कठिनाई आती ही है । इस मामले में बेसब्री ठीक नहीं ।
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