अब यह तो नहीं कहा जा सकता कि केजरीवाल मैदान छोड़कर भाग गया । केजरी के दोनों हाथों में लड्डू हैं । ऐसा तो पहले भी खूब हुआ है , जब अल्पमत सरकारें बनी हैं और गिरी हैं ।गिरना-उठना समुद्र की तरंगों की तरह चलता रहता है । यह प्रक्रिया कभी रुकी नहीं । इतिहास का गति -मार्ग अवरोधों को पार करता हुआ चलता है ।जो व्यक्ति अभिमन्यु की तरह चक्रव्यूह में घिरा हो , किन्तु अश्वमेध के घोड़े की वल्गा जिसने पकड़ ली हो ,उसकी गति क्या हो सकती है , इसका अनुमान पहले से ही लगाया जा सकता है । आज के राजनीतिक माहौल में जाति -मजहब से अलग दिखकर काम करना भी नैतिकता की हल्की-सी गंध फैलाने जैसा है ।
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