नूतनता के आँगन में
धूप की अठखेलियां हों
जैसे इन दिनों
खिल रहा गैंदा
गुलदाउदी
खिले जीवन
सभी का ।
जब मधुमास आये
और हाड कंपाती ठण्ड से
पीछा छूटे ।
जब सबको मिले
वैसा सुख जो अभी
मिलता है
कुछ सागरों -सरोवरों को ।
रेगिस्तान भी हो रससिक्त
खिले हों अनगिनत मरूद्यान
जीवन में ।
धूप की अठखेलियां हों
जैसे इन दिनों
खिल रहा गैंदा
गुलदाउदी
खिले जीवन
सभी का ।
जब मधुमास आये
और हाड कंपाती ठण्ड से
पीछा छूटे ।
जब सबको मिले
वैसा सुख जो अभी
मिलता है
कुछ सागरों -सरोवरों को ।
रेगिस्तान भी हो रससिक्त
खिले हों अनगिनत मरूद्यान
जीवन में ।
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