Wednesday, 18 December 2013

भाव और बोध के बीच एक रिश्ता बनता है किन्तु जब भाव की भूमिका भावोत्तेजना फैलाने में बदल जाती है तो तार्किकता उसका साथ छोड़ जाती है ,जिसके भयंकर और अपूरणीय दुष्परिणाम निकलते हैं । भावोत्तेजना आसानी से अफवाह के रूप में फैलाई जाती है जब कि तार्किकता निजी अध्यवसाय के बिना  नहीं आती । तार्किकता के लिए व्यक्ति को खुद से और उस समाज की कुप्रथाओं से लड़ना पड़ता है जो भावोत्तेजना के माहौल में पलता  और बड़ा होता है ।

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