Tuesday 17 December 2013

पिछले बीस-पच्चीस सालों से गैर सरकारी संगठनों की सामाजिक-शैक्षिक भूमिका पूरे देश में  बहुत बढ़ गयी है जो देशी-विदेशी फंड लेकर समाज को 'बदलने' और उसे'सुधारने' की भूमिका में देखे जा सकते हैं ।इसमें बिना मेहनत के  अर्जित किया धन शामिल रहता है जो सारी चारित्रिक और अनैतिकता सम्बन्धी बीमारियों की जड़ होता है । इसलिए  गैर सरकारी संगठनों को जांच के दायरे में लाना उतना ही जरूरी है जितना सरकारी संस्थानों को । भ्रष्टाचार चौतरफा होता है । देखा जाय तो निजी तंत्र ही भ्रष्टाचार की अंदरूनी सुरंगों से इस बीमारी को फैलाता और बढ़ाता है । वह पैसे की मार्फ़त लॉबीइंग करता है और गरीब के हक़ में जाती हुई चीजों को अपने हक़ में कर लेता है ।अतिरिक्त और बिना पसीना बहाए संचित किये जाने वाले धन और घूस की प्रकृति एक  जैसी होती है । सरकारी और गैर सरकारी में  इस मामले में कोई फर्क नहीं होता । गैर सरकारी संगठनों को यदि लोकपाल बिल से बाहर रखा  गया है तो यह एक पतली गली भ्रष्टाचार को पनपते रहने के लिए छोड़ दी गयी है ।तभी तो कहा गया है कि "  बहुत कठिन है डगर पनघट की ।"  

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