ऐसा प्रतीत होता है कि " आप" दिल्ली में सरकार बनाने जा रही है और अल्पमत जनादेश का सम्मान करने जा रही है । तुरत-फुरत सरकार न बनाने की उनकी हिचक का सबसे बड़ा कारण , जो मुझे लगता है ,वह दिल्ली के मतदाता से किया "आप" का यह वायदा भी रहा , कि 'वे अपने किसी भी विरोधी दल से न सहयोग लेंगे और न सहयोग करेंगे ।' जैसा भाजपा वाले आज उनको यह कहकर अपनी राह बताने में लगे हुए हैं कि ये तो कांग्रेस से भीतर ही भीतर मिले हुए थे । सक्रिय और नैतिक दिखने और प्रतीत होने वाले का दोनों तरह से मरण होता है । अनैतिकता, व्यक्ति को कुछ भी करा सकती है । अवसरवाद , अनैतिकता की पहली सीढ़ी होता है ।इस अवसरवाद को वे अपनाना नहीं चाहते थे । इस वजह से फिर से वे मतदाता के पास गए ।उनके लिए यह नीतिगत प्रश्न था , कोई प्रशासनिक नियम नहीं । नियम और नीति में फर्क होता है । भविष्य अब जो भी होगा , देखा जायगा । पर इससे सत्ता की निरंकुश प्रवृत्ति को फिलहाल अंकुश लगा है ।अन्यथा पुरानी परिस्थितियों में भाजपा ही दिल्ली में सरकार बनाती ।नयी परिस्थिति सापेक्षिक नैतिकता की देन है । यद्यपि बुर्जुआ सिस्टम में नैतिकता की आयु ज्यादा नहीं हुआ करती , किन्तु सुंदरता कितनी भी अल्प और सीमित क्यों न हो , आनददायिनी होती है । महान कवि तुलसी कहते हैं ----जो अति आतप व्याकुल होई । तरुछाया सुख जानइ सोई ।
No comments:
Post a Comment