Friday, 20 December 2013

ऐसा  प्रतीत होता है कि " आप" दिल्ली में सरकार बनाने जा रही है और अल्पमत जनादेश का सम्मान करने जा रही है । तुरत-फुरत सरकार  न बनाने की  उनकी हिचक का सबसे बड़ा कारण , जो मुझे  लगता है ,वह  दिल्ली के मतदाता से किया "आप"  का  यह वायदा भी रहा   , कि 'वे अपने किसी भी विरोधी दल से न सहयोग लेंगे और न सहयोग करेंगे ।' जैसा भाजपा वाले आज उनको यह कहकर अपनी राह  बताने में लगे हुए हैं कि ये तो कांग्रेस से भीतर ही भीतर मिले  हुए थे । सक्रिय  और नैतिक दिखने और प्रतीत होने वाले का दोनों तरह से मरण होता है । अनैतिकता, व्यक्ति को कुछ भी करा सकती है । अवसरवाद , अनैतिकता की पहली सीढ़ी  होता  है ।इस अवसरवाद को वे अपनाना नहीं चाहते थे । इस वजह से  फिर से वे  मतदाता के पास गए ।उनके लिए यह नीतिगत प्रश्न था , कोई प्रशासनिक नियम नहीं । नियम और नीति में फर्क होता है ।  भविष्य अब जो भी होगा , देखा जायगा । पर इससे सत्ता की निरंकुश प्रवृत्ति को फिलहाल अंकुश लगा है ।अन्यथा  पुरानी  परिस्थितियों में भाजपा ही दिल्ली में सरकार बनाती ।नयी परिस्थिति  सापेक्षिक  नैतिकता की देन  है । यद्यपि बुर्जुआ  सिस्टम में  नैतिकता की आयु ज्यादा नहीं हुआ करती , किन्तु सुंदरता  कितनी भी अल्प और सीमित क्यों न  हो , आनददायिनी होती है । महान कवि तुलसी  कहते हैं ----जो अति आतप व्याकुल होई । तरुछाया सुख जानइ सोई । 

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