सपेरे
कम हो रहे हैं सपेरे
बीन बजाते
अपने सुरों की दुनिया बसाते
सपेरे कम हो रहे हैं
और साँपों के डेरे बस रहे हैं
उजड़ रहे है गांव-खेड़े
सांप कभी अपना बिल नहीं बनाते
दूसरों के बनाये बिलों में घुस जाते हैं
बनाता कोई
और रहता है कोई
यह सांप की प्रकृति का हिस्सा है
उनके विष की पहचान गायब है
वे अपना फण फैलाकर
फुफकारते हैं ,डराते हैं
यह सपेरा ही जानता है
कि उसके विषदंत कैसे उखाड़े जाते हैं ?
जब यह कला आ जायगी तो
सांप तो रहेंगे , उनका विष नहीं ।
कम हो रहे हैं सपेरे
बीन बजाते
अपने सुरों की दुनिया बसाते
सपेरे कम हो रहे हैं
और साँपों के डेरे बस रहे हैं
उजड़ रहे है गांव-खेड़े
सांप कभी अपना बिल नहीं बनाते
दूसरों के बनाये बिलों में घुस जाते हैं
बनाता कोई
और रहता है कोई
यह सांप की प्रकृति का हिस्सा है
उनके विष की पहचान गायब है
वे अपना फण फैलाकर
फुफकारते हैं ,डराते हैं
यह सपेरा ही जानता है
कि उसके विषदंत कैसे उखाड़े जाते हैं ?
जब यह कला आ जायगी तो
सांप तो रहेंगे , उनका विष नहीं ।
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