खराब जो भी होता है , वह खराब ही होता है चाहे फिर वह कविता हो या आलोचना ।खराब कविता से खराब आलोचना लिखी जाती है और खराब आलोचना से खराब कविता की पैदावार बढ़ जाती है । खराबी एक संक्रामक रोग की तरह होती है । जैसे समाज का जातिवाद और सम्प्रदायवाद राजनीतिक तंत्र और सत्तास्वरूपों को अपने जैसा बना देते हैं ।रावण अपने राज्य को भी अपने जैसा ही रहने की कुबुद्धि का प्रसार करता है ।
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