किसी नए दल की सांप-छछूदर जैसी गत बनाना ठीक नहीं । जुम्मे-जुम्मे जिसे कुछ महीने हुए हैं यदि वह फूंक-फूंक कर कदम रख रही है तो जल्दबाज़ी ठीक नहीं । जहां बहुमत से बहुत ज्यादा जनादेश प्राप्त हुआ है वहाँ भी मंत्रिमंडल बनाने में बारह दिन लग गए हैं । जहाँ स्पष्ट जनादेश नहीं है और समर्थन भी वह पार्टी कर रही है , जिसके विरोध में सरेआम रहकर २८ सीटें हासिल की हैं , वहाँ अभिमन्यु की तरह चक्रव्यूह में फंसाना उचित नहीं कहा जा सकता । आलोचकों को सिर्फ आलोचना करने का काम रहता है , कुछ करना तो होता नहीं । जिसको करना होता है , वही जानता है । दूसरे , एक अनैतिक माहौल में सत्ता की जोड़-तोड़ जहां चलती आयी हो, वहाँ सावधानी बहुत जरूरी है । सावधानी हटी , दुर्घटना घटी ।
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