Thursday, 16 July 2015

कविता अर्जन के साथ मुहावरा भी विकसित होता दिखना चाहिए अन्यथा न कविता रहती है न मुहावरा | जिनके पास अपना मुहावरा नहीं होता वहाँ कविता भी नक़ल से ज्यादा नहीं होती |अपने मुहावरे के लिए ही कवि को जीवनभर साधना करनी पड़ती है | अपना मुहावरा और कविता दोनों का रिश्ता शरीर और प्राण जैसा होता है |

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