कविता
अर्जन के साथ मुहावरा भी विकसित होता दिखना चाहिए अन्यथा न कविता रहती है
न मुहावरा | जिनके पास अपना मुहावरा नहीं होता वहाँ कविता भी नक़ल से
ज्यादा नहीं होती |अपने मुहावरे के लिए ही कवि को जीवनभर साधना करनी पड़ती
है | अपना मुहावरा और कविता दोनों का रिश्ता शरीर और प्राण जैसा होता है |
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