Friday, 10 July 2015

कवि प्रभात की कविता ---------
कवि प्रभात के पहले और नए कविता संग्रह की एक समीक्षा में उनकी कविता को कैमरा वर्क की तरह निर्लिप्त कहा गया है | जो मेरी दृष्टि में सही नहीं है| कविता कैमरा वर्क जैसी प्रतीत होते हुए भी कैमरा वर्क नहीं होती |यदि ऐसा होता है तो यह प्रकृतवाद है |कोई भी कृति रचना तब बनती है जब उसमें रचनाकार का अपना व्यक्तित्त्व आ जाता है |रचना की पहली शर्त है ---व्यक्तित्त्व | वैसे शास्त्र भी व्यक्तित्त्व के बिना नक़ल कहा जाता है \ शास्त्र अध्येता भी पहले जब अनुसंधान कर लेते हैं तब अपनी स्थापनाओं में अपना व्यक्तित्त्व समाहित करते हैं जो उसकी खोज कहलाती है |पहाड़ों पर चढ़ने वाले पहले लोग जिन्होंने पगडंडियाँ बनाई हैं वे ही सच्चे अनुसंधान करता होते हैं | कवि प्रभात अपनी कविताओं में एक शोधक की भूमिका में भी रहते हैं कि कहीं कुछ छूट तो नहीं रहा है , जो दूसरों की निगाह में नहीं है वह उनकी निगाह में भीतर तक समाया हुआ है | यह उनकी कविता की खासियत है |दूसरे उनकी कविता का मुहावरा उस जगरौटी अंचल का है जो एक जमाने से सवाई माधोपुर जिले में फैला हुआ है |अब यह दौसा और करौली जिलों तक फ़ैल गया है |यहाँ के बोली व्यवहार में ब्रज और ढूँढाडी का एक अद्भुत यौगिक रसायन मिलता है जिसकी वजह से यहाँ के बाशिंदे काजल को भी काजड बोलते हैं |यह राजस्थानी की एक बोली ढूँढाडी का असर है |यदि भाषा का यह संस्कार नहीं होता तो यह कविता भी वैसी ही होती जैसी आमतौर पर मध्य वर्ग के लोग लिखते हैं |दरअसल वह रचना होती है जिसे मशीन नहीं कवि का मन रचता है |मशीन की अपनी उपयोगिता होती है किन्तु वह कभी मनुष्य का स्थान नहीं ले सकती |मैंने भी प्रभात की कवितायेँ पिछले दिनों पढी , उनमें कैमरा से ज्यादा वह जमीन , वह इतिहास , वह भूगोल , वह संस्कृति और सच्चे मन से वहाँ के काम करते हुए बाशिंदे बोलते हैं |क्या काम करते बाशिंदों को कैमरे में कैद किया जा सकता है ? मेरा अनुभव तो यह है कि उनके जीवन की त्रासदियों और सचाइयों को कोई कैमरा सामने नहीं ला सकता | कविता मनुष्य के बाहर के जीवन से ज्यादा उसके भीतर के जीवन की सत्य --कथा होती है ,जिसे हर रचनाकार अपनी तरह से देखता है | कैमरे के एक आँख होती है जबकि कवि सहस्रचक्षु और सहस्रबाहु होता है |

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