श्रम से शिक्षा का रिश्ता -------काम
से जी किस का नहीं चुराता |यह एक मनोविकार है जो सबके मन में रहता है कि
काम कम करना पड़े और लाभ ज्यादा हासिल हो |हमारे आसपास ऐसे लोग भी होते हैं
जिनको कोई काम न कारने के बावजूद फल की प्राप्ति होती रहता है ||किताबी
ग्यान होना पढ़ा--लिखा होना नहीं है |पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ ---ऐसे लोगों के लिए
ही लिखा गया है |जिसका श्रम से इतना ही सम्बन्ध है कि श्रम किये बिना सब
कुछ उपलब्ध होता रहे |जब श्रम किये बिना लोगों को अपार संपदा मिलने लगती है
तो सबसे ज्यादा श्रम पर ही असर होता है | प्रेम चंद ने अपनी कफ़न कहानी में
इसी मनोविकार को केंद्र में रखा है और इसके ऊपर एक पूरा पेराग्र्राफ लिखा
है |श्रम का मनोविज्ञान सामाजिक परिस्थितियों में निर्मित होता है | जो
पढ़ा--लिखा व्यक्ति पब्लिक सेक्टर में श्रम से जी चुराता है उसी को
प्राइवेट सेक्टर में हाड़तोड़ काम करते देखा जा सकता है |
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