कविता में अपना मुहावरा पा लेने का मतलब है अपना व्यक्तित्त्व पा लेना ' जो
बड़ी साधना के बाद मिलता है |अपना मुहावरा न पाने वाले कवियों के लिए ही
ठाकुर बुन्देलखंडी ने ----सीख लीन्हों मीन मृग खंजन कमल नैन /सीख लीनो जस
और प्रताप कौ कहानौ है -----जैसा कवित्त लिखा था किन्तु वे उनको कवि नहीं
मानते थे |पुराना कवि भी छंद का अभ्यास कर लेता था और सभा--दरबारों से इनाम
इकरार भी पा लेता था किन्तु अपना मुहावरा न बन पाने की वजह से कवियों में
ज्यादा समय तक टिक नहीं पाता था |घनानन्द को कहना पडा था-------लोग हैं
लाग कवित्त बनावत , मोहि तो मेरे कवित्त बनावत |यानी अभ्यास से कविता कर
लेना अलग बात है और अपना मुहावरा पा लेना अलग बात |व्यक्तित्त्व्--हीनता
कविता का सबसे बड़ा खोट होता है |उर्दू में शायर तो बहुत हैं किन्तु मीर और
ग़ालिब ने अपने व्यक्तित्त्व से कविता को अमर कर दिया है |सच तो यह है कि
जिस रोज कवि अपना मुहावरा यानी व्यक्तित्त्व पा लेता है उसी दिन वह कवियों
की पांत में खडा हो पाता है |वैसे छापेखाने का और बाज़ार का ज़माना है इसमें
कोई भी कवि बन सकता है
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