Thursday 16 July 2015

कविता में अपना मुहावरा पा लेने का मतलब है अपना व्यक्तित्त्व पा लेना ' जो बड़ी साधना के बाद मिलता है |अपना मुहावरा न पाने वाले कवियों के लिए ही ठाकुर बुन्देलखंडी ने ----सीख लीन्हों मीन मृग खंजन कमल नैन /सीख लीनो जस और प्रताप कौ कहानौ है -----जैसा कवित्त लिखा था किन्तु वे उनको कवि नहीं मानते थे |पुराना कवि भी छंद का अभ्यास कर लेता था और सभा--दरबारों से इनाम इकरार भी पा लेता था किन्तु अपना मुहावरा न बन पाने की वजह से कवियों में ज्यादा समय तक टिक नहीं पाता था |घनानन्द को कहना पडा था-------लोग हैं लाग कवित्त बनावत , मोहि तो मेरे कवित्त बनावत |यानी अभ्यास से कविता कर लेना अलग बात है और अपना मुहावरा पा लेना अलग बात |व्यक्तित्त्व्--हीनता कविता का सबसे बड़ा खोट होता है |उर्दू में शायर तो बहुत हैं किन्तु मीर और ग़ालिब ने अपने व्यक्तित्त्व से कविता को अमर कर दिया है |सच तो यह है कि जिस रोज कवि अपना मुहावरा यानी व्यक्तित्त्व पा लेता है उसी दिन वह कवियों की पांत में खडा हो पाता है |वैसे छापेखाने का और बाज़ार का ज़माना है इसमें कोई भी कवि बन सकता है

No comments:

Post a Comment