दंड
डराता जरूर है , सुधारता शायद ही हो |इसीलिये महान आत्माओं ने कहीं दंड
से काम नहीं लिया| महात्मा बुद्ध, महावीर ,ईसा मसीह,मोहम्मद साहब ,
महात्मा गांधी का जीवन इसका प्रमाण है | कार्ल मार्क्स का सिद्धांत भी डर
का सिद्धांत नहीं है |वह सच में प्रेम का सिद्धांत है |यह अलग बात है कि
प्रेम की स्थापना के लिए पाशविक शक्तियों से लोहा लेना पड़ता है | डर से
सुधार करने की गलती खूब की जाती है | जबकि दंड की प्रकृति हमेशा प्रतिशोधी
होती है |जैसे को तैसा का सिद्धांत पाशविक है , मानवीय नहीं |मानवता की
यात्रा के अनुभवों से यही लगता है कि भय से लम्बे समय तक प्रीति पैदा
नहीं की जा सकती |
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