पिछले
दिल्ली पुस्तक मेले में पहली बार कवयित्री मृदुला शुक्ला जी ने कवयित्री
शैलजा पाठक से अपनी किताब दिलवाई ---मैं एक देह हूँ , फिर देहरी ----|सोचा
था समय आने पर कुछ कहूंगा |तब कविताओं को पढ़ते हुए जैसे ताजी पुरबाई का
झोंका सा आया था |कवयित्री के पास अपनी भाषा और कविता रच लेने की अपनी
जमीन है |अपना स्वभाव जैसे कविता में उंडेल दिया है | यह तो शुरुआत है अभी
बहुत आगे जाना है किन्तु प्रस्थान बिंदु संभावनाओं को बतला देता है |पूत के
नहीं कहना चाहिए पुत्री के पाँव पालने में ही दिख जाते
हैं |मर्मवेधी और मर्मस्पर्शी कवितायेँ हैं शैलजा जी की |ऐसा कदाचित वे
ही लिख सकती हैं कि ----- "तुम्हारे लिए /गिलास भर पानी लिए /खडी औरत की
आँखें /गिलास से ज्यादा भरी थी ?" इस तरह का भरापन और गहरा अडिग विश्वास
उनकी कविता में है |उनका यह लिखना भी कितना सही है ------- "मैं जब भी
लिखूंगी प्रेम /प्रेम पर कोई कविता /समय की बंजर छाती पर / कुछ उदास पत्ते
गिरेंगे "|ऐसी कविता करने वाली कवयित्री को उनके जन्म दिन पर हार्दिक
शुभकामनाएं और बधाई
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