भाषा
का मतलब ही होता है बोलना |यह लिखने से ज्यादा बोलने पर टिकी होती है और
दुनिया में हर देश का उच्चारण अपने तरह का भिन्न भिन्न होता है |हम जिस
ब्राह्मण शब्द का प्रयोग अक्सर करते हैं इरानी या हमारे उर्दूभाषी उसे
ब्राह्मण नहीं बोल पाते ---बिरहमन बोलते हैं और अपनी ग़ज़लों के अशआरों में
इसीका प्रयोग भी करते हैं |ज्यादा प्राचीन शब्द तो भारत ही हैं |कालयात्रा
में अन्य शब्द जुड़ते चले गए हैं |वैसे इकबाल ने ----हिंदी ---कहा है
-----हिंदी हैं हम वतन है हिन्दोस्ता हमारा |यहाँ हिंदी हिन्द देश के अर्थ
में ही तो है |हिन्द , हिंदी , हिन्दुस्तान और हिन्दू एक ही जगह की पैदाइश
हैं किन्तु प्रयोग में आते रहने से अर्थापदेश , अर्थ विस्तार , अर्थ
संकोच की प्रक्रियाएं निरंतर चलती रहती हैं |भारत ,हिन्दुस्तान और इंडिया
तीनों का ही प्रचलन रहे क्या हर्ज़ है ?क्योंकि हमारी संस्कृति लगातार
विकसित और परिवर्धित होती रही है |वह एक जगह पर ठहरी नहीं रही है | जो भी
प्रभाव आया उसे उसने आत्मसात कर लिया है |आज वह बहुआयामी हो गयी है |
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