कविता की ताकत देखिये |अभी बिहार के मुख्य मंत्री ने सोलहवी सदी के जन कवि
रहीम के एक दोहे का अचूक प्रयोग किया |जिसमें कुसंग और भुजंग दो शब्द ऐसे
आये हैं जो बड़े जीवन सन्दर्भ की मांग करते हैं |पूरा अर्थ तभी खुल पाता है
|इस मामले में यानी मानव स्वभाव को समझने में रहीम बेजोड़ हैं | तुलसी के
बाद भाषा के मास्टर |यही है कविता की ताकत , उसने अपना काम पूरा कर दिया
|रहा कुसंग का सवाल , सत्ता की राजनीति करना कुछ ऐसी विवशता या स्वार्थ है
कि इसमें कविता भी दूर तक सहायता नहीं कर सकती | कुसंग तो कुसंग है ,वह
किसी का भी हो सकता है | सच तो यह है कि आज की सत्ता की सम्पूर्ण राजनीति
ही अब एक तरह का कुसंग बन चुकी है |जो अब भी कुछ मूल्यों पर टिके हैं वे
धीरे धीरे इसी कुसंग की मार से हाशिये पर चले गए हैं |वाम राजनीति ने इसका
खामियाजा सबसे ज्यादा उठाया है |सच तो यह है कि वह राजनीति कुसंग बन जाती
है जो नीति को छोड़कर सिर्फ राज पाने के लिए की जाती है |
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