किसी भी तरह की सत्ता के प्रति व्यक्त किये गए सम्मान में कृतज्ञता के भाव
के अलावा कहीं स्वार्थपूर्ति के अवसर का मनोविकार भी छिपा रहता है
|इसीलिये सम्माननीय तब तक सम्माननीय बने रहते हैं जब तक सत्ता --च्युत
नहीं कर दिए जाते |असली सम्मान वही है जो सत्ताच्युत होने के बाद सिर्फ बना
ही नहीं रहे वरन बरसाती नदी की तरह उमड उमड़ जाय |
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