बिलकुल
ठीक नहीं है किन्तु ऐसा क्यों है इस सवाल पर विचार करने की जरूरत है |आज
की विद्या अर्थकरी है |वैसे हर युगमें विद्या और अर्थ का रिश्ता रहा है |
जिन विषयों के ज्ञान से ज्यादा रुपया पैसा मिलता है और जल्दी मिलता है
|यानी जो उत्पादक विषय होते हैं लोग उनकी तरफ ही जाते हैं |पूंजी ने जबसे
अपना प्रताप बढाया है और अनेक तरह की सुविधाएं बढी हैं तबसे पूंजी एक जीवन
मूल्य की तरह लोगों के भीतर घर कर गयी है | अब तो अखबार भी इसी तरह की
सफलताओं की कहानियों से भरे रहते हैं | ऐसे में संगीत---साहित्य---कला की
कौन पूछे ?
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