Monday 9 January 2012

हमें जानना होगा  कि यह समय उत्तर-आधुनिक है जिसमें  'औद्योगिक पूंजी' की बड़ी भूमिका  नहीं रह गयी है | सर्वत्र 'आवारा पूंजी' मारीच के कंचन -मृग की तरह विचरण कर रही है |सारा खेल उसी का है | बाज़ार -तन्त्र  विखंडन-लीला में लगा हुआ है |,ज्ञानोदय और प्रबोधन की भूमिकाएं नगण्य हो गयी हैं |मीडिया से जागरूकता को विखंडित और अपदस्थ करने में मीडिया-प्रबंधक सफल हो गया है और उसकी लगाम अपने हाथ में ले ली है | पत्रकार की सापेक्ष स्वायत्तता का चीर-हरण हो चुका है |अत छोटी छोटी जगहों से लघु-पत्रकारिता के वैकल्पिक लोकतांत्रिक तन्त्र को विकसित करने की जरूरत है |जैसे स्वाधीनता आन्दोलन के दिनों में देशी भाषाओं में औपनिवेशिक तन्त्र विरोधी पत्रकारिता उद्भूत एवं विकसित हुई थी |पत्रकारिता की एक देशभक्तिपूर्ण परम्परा हमारे यहाँ रही है ,उससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है लेकिन वह त्याग की मांग करती है |अध्ययनशीलता और त्याग-वृत्ति ही रास्ता दिखला सकती हैं |

No comments:

Post a Comment