शिक्षक , यदि रचनात्मक है तो उसे आनंद-भाव और तनाव में तालमेल बिठाकर चलना होगा ,अन्यथा विद्या आज की तरह मात्र अर्थकरी होकर रह जायेगी | विद्या की प्रकृति में आनंद-भाव अन्तर-निहित रहता है बशर्ते कि उसकी मूल प्रकृति को अध्यापक हृदयगम कर ले | आज सभ्यता का दबाव इतना अधिक हो गया है कि अध्यापक को अपना दायित्व -बोध ही अपवाद-स्वरुप हो पाता है | वह व्यवस्था-जन्य निर्देशों के तंत्र में फंसकर अपना असली दायित्व भूल जाता है | उस हनुमान के लिए एक जामवंत की जरूरत हमेशा बनी रहती है , जब कि जरूरत यह है कि वह स्वयम हनुमान बने | हनुमान रामायण का एक ऐसा चरित्र है जो तनाव और आनद का सबसे बड़ा उदाहरण है |
No comments:
Post a Comment