Saturday 7 January 2012

 निर्मला पुतुल की कविता की खूबी है ,उसकी वह भाव-भूमि ,जो मध्यवर्गीय जीवनानुभवों का अतिक्रमण करने से बनती है इसलिए उनकी कविताओं से जो सवाल निकल कर आते हैं वे मध्यवर्गीय सीमा-बद्ध  लोगों को निरुत्तर कर देते हैं |उनके शिल्प में कोई अतिरिक्त सजगता नहीं है |उनका शिल्प अंतर्वस्तु  से स्वत-स्फूर्त ढंग से निकलता है |वे सहज ही नहीं ,सजग भी हैंउनके पास अनुभवों का विलक्षण कोश  मौजूद है | कविता पहले से पढ़ता रहा हूँ और उनके पहले कविता-संग्रह की समीक्षा भी ,जब वह प्रकाशित हुआ था, तभी कर चुका हूँ | इस तरह की लोकधर्मी कविता हमारी निराशा को दूर करती हुई उस आसमान की और इशारा भी करती है ,जिसमें आज भी निर्मलता बाकी है |

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