तिल चौथ
तिल चौथ में
अकेली है
एक स्त्री
ओढ़नी ओढ़े
लथपथ अंदाज
चूड़ियों का ,
अकेली वह
कई जगह |
रंग इतना
गहरा कि
छुटाए छूटता नहीं
डर की खाई
गहरी इतनी
कि सहस्राब्दियों के
भय-पुंज में
दुबकी चूही सी ,
जिन्दगी का
मिथ्या-कवच
निर्मूल |
एक भयभीत समाज
इसके बिना
रोजमर्रा की
जिन्दगी
नहीं कर सकता
बसर ,
जैसे लालची लोग
कभी
एक बेहतर
समाज
बनाने की
नहीं कर सकते
कल्पना तक |
तिल चौथ में
अकेली है
एक स्त्री
ओढ़नी ओढ़े
लथपथ अंदाज
चूड़ियों का ,
अकेली वह
कई जगह |
रंग इतना
गहरा कि
छुटाए छूटता नहीं
डर की खाई
गहरी इतनी
कि सहस्राब्दियों के
भय-पुंज में
दुबकी चूही सी ,
जिन्दगी का
मिथ्या-कवच
निर्मूल |
एक भयभीत समाज
इसके बिना
रोजमर्रा की
जिन्दगी
नहीं कर सकता
बसर ,
जैसे लालची लोग
कभी
एक बेहतर
समाज
बनाने की
नहीं कर सकते
कल्पना तक |
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