नगर का दिल
सूखी नदी
नगर का दिल ,
सूखे क्षण हैं
सूखी घड़ियाँ ,
सूखा -सा
ममता का धागा
सूख रही
करुणा की कड़ियाँ ,
भट्टी से तपते
मौसम में
सूख गयी
------झिलमिल |
रेत हुए दिन
रातें हुई
-----बबूल ,
गठरी में कुछ नहीं
गाँठ के निकले
------गलत उसूल |
आमों की छाया में ,
कटती , दोपहरी
-----तिल-तिल |
सूखी नदी
नगर का दिल ,
सूखे क्षण हैं
सूखी घड़ियाँ ,
सूखा -सा
ममता का धागा
सूख रही
करुणा की कड़ियाँ ,
भट्टी से तपते
मौसम में
सूख गयी
------झिलमिल |
रेत हुए दिन
रातें हुई
-----बबूल ,
गठरी में कुछ नहीं
गाँठ के निकले
------गलत उसूल |
आमों की छाया में ,
कटती , दोपहरी
-----तिल-तिल |
No comments:
Post a Comment