Saturday 14 January 2012

कविताएँ, वास्तव में कविताएँ ,अपने अनुभवों से सृजित , नकलीपन कतई नहीं ,नई जमीन तोड़नेवाली कवितायेँ , निडर और  बेलाग शैली में स्वयं को अभिव्यक्त करती और अपने समय और समाज से सम्बद्ध , स्त्री और पुरुष के चालू रिश्तों को बेबाकी से उकेरती , भीतर के पाखंड को उद्घाटित करती , परिपक्वता का प्रमाण देती ये कवितायें एक साँस में पढ़ ली गयी कविताएँ | गद्य में लय  का कोई अवरोध नहीं , मुक्त छंद का  बेहद कौशल के साथ निर्वहन करती कवितायेँ और क्या कहूँ कहते ही जाने को मन कर रहा है | कथन -प्रवाह रुक ही नहीं पा रहा है | मेरी बधाई पंहुचाएं शुभम श्री को | विद्यार्थी जीवन पर इतनी बेहतरीन कवितायेँ पढने को नहीं मिली |

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