Monday, 9 January 2012

तीसरा नेत्र

दो नेत्र 
दुनियावी  ,
जब तक
नहीं सम्भव
कविता
एक पूर्ण वृक्ष-सी|

खुलेगी दृष्टि
जब तीसरी
उतरेगी वह
झरने की
तरह
उठती-गिरती
फिर भी
लगातार  बहती |

रँग जाएगा
मन-मिजाज
जैसे पीले रंग
में रँग
जाता
पूस माह
का हर दिन  |

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