Tuesday 31 January 2012

इतना तो मुझे मालूम है कि  जब प्रेम चंद गांधी बहुत बड़े .'मार्क्सवादी' थे और  प्रगतिशील लेखक संघ के बड़े नेता नहीं बने थे तब विजेंद्र की  ' कृति ओर 'के सम्पादक मंडल से बाहर कर दिए गए थे और इससे वे  बेहद नाराज हुए थे | तभी से यह सब चल रहा है | यह और कुछ नहीं उनकी निजी और भीतर की गहरी पीड़ा है | विजेंद्र के बारे में जहां तक मैं जानता हूँ अपनी विचारधारा और आचरण में आवारा पूंजी के समर्थकों से लाख गुना बेहतर हैं |यह फेस बुक का दुरूपयोग है कि जो  व्यक्ति फेस बुक पर है ही नहीं उसका इस तरह चरित्र - हनन करना | यह बेहद दुखद और निंदनीय है |

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