इतना तो मुझे मालूम है कि जब प्रेम चंद गांधी बहुत बड़े .'मार्क्सवादी' थे और प्रगतिशील लेखक संघ के बड़े नेता नहीं बने थे तब विजेंद्र की ' कृति ओर 'के सम्पादक मंडल से बाहर कर दिए गए थे और इससे वे बेहद नाराज हुए थे | तभी से यह सब चल रहा है | यह और कुछ नहीं उनकी निजी और भीतर की गहरी पीड़ा है | विजेंद्र के बारे में जहां तक मैं जानता हूँ अपनी विचारधारा और आचरण में आवारा पूंजी के समर्थकों से लाख गुना बेहतर हैं |यह फेस बुक का दुरूपयोग है कि जो व्यक्ति फेस बुक पर है ही नहीं उसका इस तरह चरित्र - हनन करना | यह बेहद दुखद और निंदनीय है |
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