Monday 16 January 2012

एक ऐसे साथी से जिसके साथ धोखा हुआ
ये आपके मित्र थे ही नहीं , यह आपकी नासमझी है कि  आपने जो भी फेसबुक पर आ गया , उसी को मित्र मान लिया | जाने कैसे-कैसे लोग हैं इस दुनिया में और फिर इस आभासी दुनिया में कितनी ठगी और कितना अपनापन है , आप क्या जानें ? यह अधिकाँश  मात्रा में आत्म-मुग्ध और आत्म-प्रचारकों का एक ऐसा समूह है  जो अपनी एक असम्बद्ध दुनिया बसा लेता है | अपवाद हर जगह हैं | यदि आपके चहेते आपसे वादा खिलाफी कर रहे हैं तो कबीर की इन पंक्तियों को याद करिए और'  'नेकी कर कुए में डाल ' -को समझ कर सब कुछ भूल जाइए | कबीर की बात ----"कबिरा आप ठगाइये , और न ठगिये कोय | आप ठगे सुख होत है , और ठगे दुःख होय |"

No comments:

Post a Comment