Friday, 13 January 2012

बन्धुवर , वह औद्योगिक पूंजी का ज़माना था ,जब मजदूर की पगार का शोषण  और उससे अतिरिक्त घंटे काम कराकर 'अतिरिक्त पूंजी का ' जुगाड़ किया जाता था |  इसी से पूंजी बढ़ती है  और अतिरिक्त ताकत से प्रशासन -सत्ता से अपना गठजोड़ बिठा लेती है |प्रलोभन और भेद-युक्तियाँ उसके सबसे बड़े  अस्त्र  होते हैं |यही तो  संघर्ष है | सुकोमल सेन की किताब बात के मर्म तक पंहुचाने वाली होगी | अब औद्योगिक पूंजी का स्थान 'आवारा पूंजी' ने ले लिया है |

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