Wednesday, 13 November 2013

नेहरू उस जमाने के सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे ,अनुभवी  और विश्व दृष्टि संपन्न  राजनेता  तो थे ही , वे उन राजनेताओं की अग्रिम पांत  में   थे जो सोचे हुए को एक सीमा तक करते  हैं । सोचते तो बहुत लोग हैं पर उसके अनुरूप ज्यादा कुछ कर नहीं पाते । अब तो राजनीति में एक बहुत बड़ी जमात न सोचने-समझने वालों की है । जो अपनी जाति  और मजहब के समीकरण से पैदा हुई है ।नेहरू के होने से लगता था कि राजनीति जंगल नहीं  है और न ही उसमें भेड़ियों की फ़ौज है । नेहरू के होने से अहसास होता था कि देश के  बहुलतावादी चरित्र  और संस्कृति पर आंच नहीं आने वाली है ।नेहरू के होने से लोकतंत्र को समझा जा सकता था । नेहरू की उनकी  अपनी सारी सीमाओं के बाद भी राजनीति से घृणा नहीं , प्रेम करना सीखा जा सकता था । उनकी जयन्ती पर उनको  प्रणाम । काश, उनकी विरासत की राजनीति को आगे ले जाया जाना हो पाता और देश को आवारा पूंजी के हाल पर नहीं छोड़ दिया जाता ।    

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