नेहरू उस जमाने के सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे ,अनुभवी और विश्व दृष्टि संपन्न राजनेता तो थे ही , वे उन राजनेताओं की अग्रिम पांत में थे जो सोचे हुए को एक सीमा तक करते हैं । सोचते तो बहुत लोग हैं पर उसके अनुरूप ज्यादा कुछ कर नहीं पाते । अब तो राजनीति में एक बहुत बड़ी जमात न सोचने-समझने वालों की है । जो अपनी जाति और मजहब के समीकरण से पैदा हुई है ।नेहरू के होने से लगता था कि राजनीति जंगल नहीं है और न ही उसमें भेड़ियों की फ़ौज है । नेहरू के होने से अहसास होता था कि देश के बहुलतावादी चरित्र और संस्कृति पर आंच नहीं आने वाली है ।नेहरू के होने से लोकतंत्र को समझा जा सकता था । नेहरू की उनकी अपनी सारी सीमाओं के बाद भी राजनीति से घृणा नहीं , प्रेम करना सीखा जा सकता था । उनकी जयन्ती पर उनको प्रणाम । काश, उनकी विरासत की राजनीति को आगे ले जाया जाना हो पाता और देश को आवारा पूंजी के हाल पर नहीं छोड़ दिया जाता ।
No comments:
Post a Comment