Monday 18 November 2013

साम्प्रदायिकता अक्सर संस्कृति के वेश में आती है । इसलिए संस्कृति के बारे में  परम्परा और नवीनता के रिश्ते में सोचने-समझने की कला जब तक लोक-स्तर  पर विकसित  नहीं होगी , संस्कृति उन  कूढ़  मगजों के हाथ का खिलौना बनी रहेगी , जो उसे राजनीति के मैदान में लाकर अपना  खेल खेलते रहते हैं । 

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