साम्प्रदायिकता अक्सर संस्कृति के वेश में आती है । इसलिए संस्कृति के बारे में परम्परा और नवीनता के रिश्ते में सोचने-समझने की कला जब तक लोक-स्तर पर विकसित नहीं होगी , संस्कृति उन कूढ़ मगजों के हाथ का खिलौना बनी रहेगी , जो उसे राजनीति के मैदान में लाकर अपना खेल खेलते रहते हैं ।
No comments:
Post a Comment