ओछे आदमी की फितरत होती है कि वह किसी विधा में ख्यात हुए व्यक्ति में एक अवतार खोजने लगता है । वह जानता नहीं कि सभी व्यक्ति माटी-चून के बने होते हैं । अपने से ऊपर उठा हुआ व्यक्ति तो कभी कभी पैदा हुआ करता है । विडम्बना यह है कि ऐसा वे लोग ज्यादा करते हैं जो हर कदम पर अपनी चाल के गीत ही गाते देखे जाते हैं ।जो अच्छा कलाकार है जरूरी नहीं कि जीवन-व्यवहार और सोच में वह बहुत दूर की सोच पाए । वह अपनी स्वार्थबद्धता से मुक्त नहीं हो पाता । मंगल यान अभियान में बड़े बड़े वैज्ञानिक लगे हैं लेकिन उनमें ऐसे भी हैं जो अपनी सोच में विज्ञान से कोसों दूर हैं । विज्ञान अपनी जगह और व्यवहार अपनी जगह । कला अपनी जगह और सोच अपनी जगह । यही विडम्बना है जीवन की । मशहूर शायर जौक का एक शेर है----
आदमीयत और शै है, इल्म है कुछ और शै
कितना तोते को पढ़ाया , पर वो हैवां ही रहा ।
आदमीयत और शै है, इल्म है कुछ और शै
कितना तोते को पढ़ाया , पर वो हैवां ही रहा ।
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