Sunday 17 November 2013

तीन कविता संग्रहों के रचयिता और लोक-संवेदना के प्रखर चितेरे निलय उपाध्याय इन दिनों अपनी भागीरथी-यात्रा पर हैं । एक लम्बी यात्रा पर उनकी तरह निकलना साधारण काम नहीं है । एक आधुनिक  कवि  गंगा का सिंहावलोकन करने निकला है  । कवि का अवलोकन  अलग तरह का होता है । गंगा को तुलसी ने मात्र एक नदी नहीं माना है ---धन्वी काम नदी पुनि गंगा । बहरहाल गंगा उनके मनोमालिन्य  का प्रक्षालन ही नहीं करेगी वरन वह आत्मिक एवं जीवन-द्रव्यात्मक  समृद्धि भी प्रदान करेगी ,जो काव्य-रचना के लिए  हर युग में जरूरी रही है । यात्रा अपने आप में व्यक्ति को जीवनानुभवों से आपूरित करती है । यात्रा आख्यान और विविध समाजों का मेला उनकी यात्रा को ,निस्संदेह समृद्ध करेगा । कष्टों और प्रसन्न्ताओं के द्वंद्वों से उनकी यात्रा को नवता मिलती रहेगी , ऐसा बिना किसी संदेह के कहा जा सकता है । इस यात्रा में उनकी लोक-गति को भी  ताकत मिलेगी ।

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