राजे-महाराजे , बाद में अंग्रेज सब अपने दरबारों का ठाठ-बाट सजाते थे और समाज में अपनी आधिकारिकता का प्रभाव पैदा करते थे । अंग्रेज राय बहादुर बनाया करते थे । आदमी को मिथ में बदलना और इंसान न रहने देना तथा आदमी से इंसान बनने की प्रक्रिया को खत्म करना हर समय की सत्ता अच्छी तरह से जानती है । इससे प्रलोभन की प्रवृत्ति विकसित होती है । सत्ता प्रलोभन और भय से चलती है । लोकतंत्र , जब तक वास्तव में नहीं स्थापित नहीं हो जाता, तब तक सत्ताएं अपने चरित्र के रूपों का प्रदर्शन दशानन के दस मुखों की तरह करती रहती हैं । यह प्रक्रिया आज भी चल रही है और वोट का समय हो तो इसकी गति को पंख लग जाते हैं । इसीलिये हर युग की सत्ता अपने तरीके से सम्मानों , पुरस्कारों ,श्रीयों , रत्नों का लोभ- पाश फैलाती हैं । इससे ज्यादा जरूरत है आदमी से इंसान बनाने की प्रक्रिया को तेज करने की ।इसीसे लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होती हैं और उसमें हर व्यक्ति अपने आप को सम्मानित अनुभव करता है ।
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